लखनऊ में ई-रिक्शा चालकों के लिए एक बड़ी खुशखबरी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्थानीय निवासी होने की बाध्यकारी शर्त को खारिज कर दिया है। इस फैसले से हजारों प्रवासी मजदूरों को नया रोजगार का रास्ता खुल गया।

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पुराना नियम जो बन गया था बाधा
पहले लखनऊ प्रशासन ने ई-रिक्शा रजिस्ट्रेशन पर सख्त पाबंदियां लगा दी थीं। सिर्फ शहर के मूल निवासियों को ही नया पंजीकरण मिलना था, जबकि बाहर से आए लोग या किराएदार बाहर रह जाते। साथ ही, पहले से एक रिक्शा होने पर दूसरा नहीं मिलता। यह नियम रोजी-रोटी कमाने वालों के लिए भारी मुसीबत बन गया था।
कोर्ट ने क्यों तोड़ा ये नियम?
हाईकोर्ट की बेंच ने याचिकाओं की सुनवाई के बाद साफ कहा कि ऐसा नियम संविधान के खिलाफ है। यह समानता, व्यवसाय की स्वतंत्रता और जीवन के अधिकारों का हनन करता है। कोर्ट ने वैकल्पिक उपाय सुझाए, जैसे रजिस्ट्रेशन की संख्या सीमित रखना या फिटनेस जांच में लापरवाही पर सख्ती। अब प्रशासन को नए नियम बनाने होंगे जो सभी के हित में हों।
चालकों को मिली राहत और नए अवसर
इस फैसले से ई-रिक्शा खरीदना आसान हो गया। कोई भी व्यक्ति अब बिना स्थानीय प्रमाण-पत्र के रजिस्टर करा सकेगा। शहर में ट्रैफिक नियंत्रण जरूरी है, लेकिन भेदभावपूर्ण नियम नहीं। इससे प्रवासी श्रमिकों को रोजगार मिलेगा और ई-रिक्शा का बाजार बढ़ेगा।
भविष्य में क्या बदलाव संभव?
परिवहन विभाग को अब पारदर्शी नीति बनानी चाहिए। सालाना सीमित रजिस्ट्रेशन और नियमित जांच से व्यवस्था सुधरेगी। यह फैसला उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों के लिए उदाहरण बनेगा। ई-रिक्शा को बढ़ावा देकर प्रदूषण कम होगा और गरीबों की आय बढ़ेगी।
















