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अब बैंकिंग में जरूरी हुआ MNV! क्या है Mobile Number Validation और क्यों हर ग्राहक को करना पड़ेगा यह काम?

DoT के TCS Rules 2024 संशोधन से साइबर फ्रॉड पर ब्रेक! MNV से मोबाइल नंबर वैरिफाई होगा, रीसेल फोन IMEI चेक अनिवार्य। TIUE नियमों से बैंक-ईकॉमर्स डेटा शेयरिंग आसान। चोरी के डिवाइस बाजार बंद, डिजिटल ट्रांजेक्शन सेफ!​

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आजकल साइबर क्राइम का बोलबाला है ना? हर रोज खबरें आती हैं कि किसी का अकाउंट हैक हो गया या फर्जी नंबर से लोन ले लिया। इसी को रोकने के लिए दूरसंचार विभाग (DoT) ने टेलीकॉम साइबर सिक्योरिटी (TCS) रूल्स 2024 में बड़े बदलाव किए हैं। ये संशोधन 22 अक्टूबर 2025 से लागू हो चुके हैं, जो बैंकिंग, ई-कॉमर्स और डिजिटल सर्विसेज को टेलीकॉम पहचानों से जोड़ने वाले रिस्क को कम करेंगे। असल में, ये नियम डिजिटल दुनिया को ज्यादा सुरक्षित बनाने का एक स्मार्ट स्टेप हैं।

मोबाइल नंबर वैलिडेशन (MNV): आपका नंबर सचमुच आपका है?

सोचिए, आप अमेज़न या फ्लिपकार्ट पर अकाउंट बनाते हैं और किसी का भी मोबाइल नंबर डाल देते हैं। क्रिमिनल्स तो इसी का फायदा उठाते हैं – फर्जी अकाउंट खोलकर धोखा देते हैं। MNV प्लेटफॉर्म इसी गैप को भरता है। अब बैंक या प्लेटफॉर्म्स चेक कर सकेंगे कि नंबर जिसका नाम पर रजिस्टर्ड है, वही यूजर है या नहीं। ये विकेंद्रीकृत तरीके से होगा, प्राइवेसी का भी ध्यान रखा जाएगा। इससे mule accounts और identity theft पर ब्रेक लगेगा, डिजिटल ट्रांजेक्शन में भरोसा बढ़ेगा। लेकिन कुछ लोग प्राइवेसी का रोना रो रहे हैं – लगता है, सिक्योरिटी के लिए थोड़ा कॉम्प्रोमाइज़ तो बनता है!

रीसेल डिवाइस स्क्रबिंग: चोरी के फोन का बाजार बंद!

सेकंड हैंड फोन खरीदते वक्त डर लगता है ना कि कहीं stolen या ब्लैकलिस्टेड तो नहीं? ये नया नियम सेलर्स को IMEI चेक करने का आदेश देता है। रीसेल डिवाइस स्क्रबिंग से पता चलेगा कि फोन legit है या illegal। बाजार से चोरी के स्मार्टफोन्स गायब हो जाएंगे, खरीदारों को मन की शांति मिलेगा। टेलीकॉम कंपनियां और प्लेटफॉर्म्स मिलकर इसे कार्यान्वित करेंगे। वाह, ये तो कमाल का फीचर है – अब OLX या क्विकर पर बिना टेंशन शॉपिंग!

TIUE: पहचान शेयरिंग से फ्रॉड ट्रेसिंग आसान

टेलीकॉम आइडेंटिफायर यूजर एंटिटी (TIUE) के तहत बैंक, ई-कॉमर्स और दूसरी कंपनियां स्पेशल सर्कमस्टैंस में गवर्नमेंट को मोबाइल नंबर, IMEI या IP डिटेल्स शेयर करेंगी। ये सिर्फ रेगुलेटेड केसेज में होगा, डेटा प्रोटेक्शन नॉर्म्स फॉलो करते हुए। फायदा? साइबर फ्रॉड केस तेजी से सॉल्व होंगे, traceability बढ़ेगी। DoT का कहना है कि ये innovation और national security का परफेक्ट बैलेंस है। कुल मिलाकर, डिजिटल इंडिया को सेफ बनाने का मास्टरस्ट्रोक!

क्या हैं चैलेंजेस और फायदे?

शुरुआत में थोड़ी असुविधा तो होगी – हर प्लेटफॉर्म पर नंबर वेरिफाई करना पड़ेगा। क्रिमिनल्स शॉर्टकट ढूंढ सकते हैं, लेकिन ये सिस्टम उन्हें मुश्किल में डालेगा। लॉन्ग टर्म में, फ्रॉड कम होंगे, लोग डिजिटल ट्रांजेक्शन पर कन्फिडेंट फील करेंगे। DoT ने गलती से दोबारा पब्लिश करने का इश्यू भी क्लियर कर दिया – नियम पूरी तरह लागू हैं। दोस्तों, सिक्योरिटी पहले, फिर सुविधा! ये बदलाव डिजिटल इकोसिस्टम को मजबूत बनाएंगे।

Author
Divya

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