
ओबीसी आरक्षण से कुछ विशिष्ट जातियों को सीधे तौर पर हटाने की कोई राष्ट्रव्यापी सिफारिश नहीं है, बल्कि मुख्य रूप से ‘क्रीमी लेयर’ (Creamy Layer) के मानदंडों पर चर्चा चल रही है, हालांकि, हाल ही में पश्चिम बंगाल में कुछ समुदायों के ओबीसी दर्जे को लेकर कानूनी विवाद सामने आया है।
यह भी देखें: Free Solar Chulha Scheme: फ्री सोलर चूल्हा पाने का मौका! ऑनलाइन आवेदन शुरू, जानें कैसे मिलेगा पूरा लाभ
Table of Contents
‘क्रीमी लेयर’ की समीक्षा
- केंद्र सरकार ओबीसी में ‘क्रीमी लेयर’ के आय मानदंडों की समीक्षा कर रही है। वर्तमान आय सीमा ₹8 लाख प्रति वर्ष है। इस सीमा को बढ़ाने या न बढ़ाने पर बहस जारी है। जो लोग इस आय सीमा से ऊपर आते हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है, भले ही वे ओबीसी समुदाय से हों। सरकार का इरादा यह सुनिश्चित करना है कि आरक्षण का लाभ सबसे जरूरतमंद लोगों तक पहुंचे।
पश्चिम बंगाल का मामला
- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने हाल ही में पश्चिम बंगाल में 77 समुदायों (जिनमें ज्यादातर मुस्लिम समुदाय शामिल हैं) को ओबीसी सूची में शामिल करने वाली प्रक्रिया को असंवैधानिक बताया था। उच्च न्यायालय ने कहा कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं हो सकता। पश्चिम बंगाल सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और मामले की सुनवाई चल रही है।
यह भी देखें: Free Hand Pump Yojana: अब घर पर लगवाएं बिल्कुल फ्री सरकारी हैंडपंप! आवेदन का सबसे आसान तरीका जानें
न्यायालय के निर्णय
- सर्वोच्च न्यायालय ने अतीत में कई मौकों पर आरक्षण की 50% की सीमा और ‘क्रीमी लेयर’ को बाहर करने के सिद्धांत को दोहराया है। 2015 में, सुप्रीम कोर्ट ने जाट समुदाय को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने के यूपीए सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था, यह तर्क देते हुए कि केवल जाति आरक्षण का आधार नहीं हो सकती।
संक्षेप में, वर्तमान में किसी विशेष जाति को स्थायी रूप से हटाने की सिफारिश नहीं है, बल्कि ‘क्रीमी लेयर’ के माध्यम से संपन्न व्यक्तियों को आरक्षण के दायरे से बाहर रखने और आरक्षण नीतियों की संवैधानिक वैधता सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
















