
नोएडा और दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) इन दिनों प्रदूषण (Pollution), घने कोहरे और कड़ाके की ठंड के खतरनाक कॉम्बिनेशन से जूझ रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि सुबह के समय दृश्यता बेहद कम रहती है और हवा में घुले प्रदूषक तत्व बच्चों, बुजुर्गों और बीमार लोगों की सेहत पर सीधा असर डाल रहे हैं। ऐसे माहौल में स्कूलों के खुले रहने और सर्दियों की छुट्टियों (Winter Vacation) के तय शेड्यूल को लेकर अब अभिभावक और शिक्षाविद सवाल खड़े कर रहे हैं।
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प्रदूषण और ठंड का डबल अटैक
हर साल की तरह इस बार भी दिसंबर महीने में एयर क्वालिटी (Air Quality) बेहद खराब स्तर पर पहुंच गई है। ठंड के साथ-साथ स्मॉग (Smog) और कोहरे की वजह से सुबह-सुबह बच्चों को स्कूल पहुंचने में काफी दिक्कत हो रही है। अभिभावकों का कहना है कि छोटे बच्चों के लिए इतनी खराब हवा में रोजाना स्कूल जाना उनकी सेहत के लिए जोखिम भरा साबित हो सकता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, दिसंबर के महीने में प्रदूषण का स्तर अक्सर अपने चरम पर होता है, जबकि जनवरी के अंत या फरवरी की शुरुआत में मौसम अपेक्षाकृत साफ हो जाता है। इसके बावजूद स्कूलों में सर्दियों की छुट्टियां (School Winter Holidays) अभी भी क्रिसमस और न्यू ईयर (Christmas-New Year) के आसपास ही रखी जाती हैं, जो कई लोगों को अव्यवहारिक लग रहा है।
ब्रिटिश काल की परंपरा पर सवाल
अभिभावकों और शिक्षाविदों का कहना है कि स्कूलों में छुट्टियों का मौजूदा पैटर्न ब्रिटिश काल (British Era) की सोच पर आधारित है। उस समय के मौसम और परिस्थितियां आज के भारत, खासकर दिल्ली-एनसीआर से बिल्कुल अलग थीं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जब आज के समय में दिसंबर के दौरान प्रदूषण और ठंड सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं, तो छुट्टियों को इसी अवधि में क्यों न शिफ्ट किया जाए?
लोगों का तर्क है कि जनवरी में जब छुट्टियां होती हैं, तब तक प्रदूषण का स्तर कई बार कम हो चुका होता है। ऐसे में बच्चों को सबसे ज्यादा खराब मौसम में स्कूल जाना पड़ता है, जो उनके स्वास्थ्य (Health) के लिए ठीक नहीं है।
अस्पतालों में बढ़ रही सांस के मरीजों की संख्या
ग्रेटर नोएडा स्थित राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (GIMS) के निदेशक ब्रिगेडियर डॉ. राकेश गुप्ता ने मौजूदा स्थिति को गंभीर बताया है। उनके अनुसार, प्रदूषण और ठंड का असर सीधे लोगों की सेहत पर पड़ रहा है। अस्पताल की ओपीडी (OPD) में रोजाना 1500 से ज्यादा मरीज पहुंच रहे हैं, जिनमें से करीब 30 से 40 फीसदी मरीज सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित हैं।
डॉ. गुप्ता ने बताया कि मरीजों की प्रमुख शिकायतों में सांस लेने में तकलीफ, लगातार खांसी, गले में संक्रमण और आंखों में जलन शामिल है। बच्चों और बुजुर्गों पर इसका असर सबसे ज्यादा देखा जा रहा है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि इस समय बच्चों को अतिरिक्त सावधानी की जरूरत है।
शिक्षाविदों की मांग: जल्दी हों छुट्टियां
शिक्षाविद राकेश कुमार का कहना है कि मौजूदा हालात बेहद चिंताजनक हैं। उनके अनुसार, “बच्चों की सेहत पर सर्दी के साथ-साथ प्रदूषण का सीधा हमला हो रहा है। स्कूल प्रबंधन अभी भी अंग्रेजी कैलेंडर को देखकर न्यू ईयर और क्रिसमस के आसपास छुट्टियां तय करता है, जो मौजूदा परिस्थितियों में बिल्कुल सही नहीं है।”
उन्होंने शिक्षा विभाग (Education Department) और जिला प्रशासन (District Administration) से मांग की है कि बच्चों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए स्कूलों की सर्दियों की छुट्टियां जल्द शुरू करने के आदेश दिए जाएं।
अभिभावकों की आवाज
ग्रेटर नोएडा निवासी सविता का कहना है कि जनवरी में छुट्टी देने के बजाय स्कूलों को दिसंबर में, जब प्रदूषण और कोहरा सबसे ज्यादा होता है, तब बंद किया जाना चाहिए। वहीं, पैरेंट अमित दास का मानना है कि सरकार को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। उनका कहना है कि बच्चों की सेहत किसी भी शैक्षणिक कैलेंडर (Academic Calendar) से ज्यादा अहम है।
क्या बदलेगा स्कूल कैलेंडर?
फिलहाल शिक्षा विभाग की ओर से इस विषय पर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन जिस तरह से अभिभावक, डॉक्टर और शिक्षाविद एक सुर में छुट्टियों के शेड्यूल में बदलाव की मांग कर रहे हैं, उससे यह मुद्दा लगातार गंभीर होता जा रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रशासन बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सर्दियों की छुट्टियों के पैटर्न में कोई बदलाव करता है या नहीं।















