
राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में एक बेहद महत्वपूर्ण और समाजिक दृष्टि से संवेदनशील फैसला सुनाया है। अदालत ने साफ कहा कि किसी भी वयस्क और विवाहित संतान को अपने पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति में बिना अनुमति रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। अगर पिता अपनी अनुमति वापस ले लेता है, तो बेटे या बेटी को तुरंत वह घर खाली करना होगा चाहे वे कितने ही वर्षों से क्यों न रह रहे हों।
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क्या था पूरा मामला?
यह मामला एक ऐसे पिता से जुड़ा था जिसने अपनी मेहनत की कमाई से मकान खरीदा था। बेटा और बहू उस मकान के एक हिस्से में रहते थे, जिसे पिता ने सद्भावना में रहने दिया था। लेकिन जब रिश्ते बिगड़ गए, पिता ने उन्हें घर खाली करने को कहा। बेटा हटने को तैयार नहीं हुआ और मामला अदालत तक पहुंच गया।
पिता ने कोर्ट में याचिका दायर की कि वह अपनी खुद की संपत्ति वापस पाना चाहते हैं। ट्रायल कोर्ट ने पिता के पक्ष में फैसला दिया। बेटा हार नहीं माना और हाईकोर्ट तक अपील लेकर पहुंचा। उसने दावा किया कि यह मकान संयुक्त परिवार की संपत्ति है, इसलिए उसे भी सह-अधिकार है।
हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
जस्टिस सुदेश बंसल की बेंच ने दस्तावेज़ देखकर पाया कि घर पूरी तरह पिता की कमाई से खरीदा गया था, यानी Self-Acquired Property। कोर्ट ने कहा:
- बेटे का उस घर में रहना सिर्फ पिता की अनुमति पर आधारित था।
- अनुमति वापस लेते ही उसका वहां रहना अवैध हो जाता है।
- पिता की संपत्ति पर बेटे-बेटी का कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता।
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बेटे पर लगा ₹1 लाख का जुर्माना
कोर्ट ने पाया कि बेटे द्वारा अपील फाईल्ड करना सिर्फ पिता को परेशान करने की कोशिश थी। इसलिए हाईकोर्ट ने बेटे की अपील खारिज करते हुए उस पर ₹1,00,000 का जुर्माना लगा दिया। यह संदेश भी दिया कि यदि बेटा या बेटी पिता को अनावश्यक मुकदमों में उलझाकर परेशान करते हैं, तो अदालतें सख्त रुख अपनाएंगी।
क्या कहता है कानून?
- Self-Acquired Property पर केवल पिता का पूरा अधिकार होता है।
- वयस्क बच्चे इसे छोड़ना पड़ेगा, अगर पिता रहने का अधिकार वापस ले लेता है।
- बिना वसीयत (Will) के पिता की मृत्यु होने पर ही बच्चे उत्तराधिकारी बनते हैं।
- पिता के जीवित रहते हुए कोई दावा नहीं बनता, चाहे बेटा विवाहित हो या अविवाहित।
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