
अगर आप डेयरी या पशुपालन से जुड़े किसान हैं और हमेशा हरे चारे की टेंशन रहती है, तो उत्तर प्रदेश सरकार की नेपियर घास योजना आपके लिए एक बेहतरीन मौका साबित हो सकती है। इस स्कीम के तहत न सिर्फ हरा, पौष्टिक चारा मिलता है, बल्कि सरकार सीधे आपकी जेब में अनुदान (subsidy) भी डाल रही है।
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क्या है नेपियर घास सब्सिडी स्कीम?
राज्य सरकार ने कुछ चुनिंदा जिलों में नेपियर घास की खेती को बढ़ावा देने के लिए पायलट योजना शुरू की है। इसके तहत किसानों और संस्थाओं को नेपियर घास लगाने पर प्रति हेक्टेयर लगभग ₹20,000 तक की वित्तीय सहायता दी जा रही है। कई जगहों पर यह मदद छोटे यूनिट में भी मिल रही है, जैसे 0.2 हेक्टेयर (करीब 2.5–3 बीघा) पर ₹4,000 तक अनुदान और घास की जड़ें (root slips) पूरी तरह मुफ्त दी जा रही हैं। यानी शुरुआती लागत लगभग जीरो के बराबर हो जाती है और किसान सीधे उत्पादन व आय पर फोकस कर सकता है।
योजना का असली मकसद क्या है?
इस स्कीम का मुख्य उद्देश्य पशुओं के लिए सालभर हरा, पौष्टिक चारा उपलब्ध कराना है। गांवों और कस्बों में अक्सर गर्मी या सूखे के समय हरे चारे की भारी कमी हो जाती है, जिससे दूध उत्पादन गिरता है और पशुओं का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। नेपियर घास जैसी हाई-यील्ड फॉडर क्रॉप से सरकार एक साथ तीन लक्ष्य साधना चाहती है –
- दूध उत्पादन बढ़ाना
- पशुपालकों की आय में स्थिरता लाना
- चारे की कमी से जुड़ी दिक्कतों को स्थायी रूप से कम करना
किन जिलों में मिल रहा है फायदा?
यह योजना अभी पायलट मोड में है, इसलिए इसे कुछ चुनिंदा जिलों में लागू किया गया है। प्रयागराज, हरदोई, बाराबंकी, सहारनपुर जैसे जिलों में पशुपालन विभाग किसानों को नेपियर घास की जड़ें मुफ्त दे रहा है और तय क्षेत्र पर रोपाई करने पर अनुदान भी जारी कर रहा है। आगे चलकर, परिणाम अच्छे रहे तो योजना और जिलों में भी विस्तारित हो सकती है, इसलिए आसपास के किसान भी अपडेट लेते रहें।
बाय-बैक मॉडल: घास उगाओ, सरकार को बेचो
प्रयागराज जैसे कुछ इलाकों में नेपियर घास पर “बाय-बैक” मॉडल भी लागू किया गया है। इसका मतलब यह है कि आप घास उगाते हैं और सरकार या संबंधित एजेंसी उसे आपसे खरीद भी लेती है। कई जगह यह खरीद बाजार मूल्य से अधिक या लगभग डबल रेट पर की जा रही है, जिससे किसान को फिक्स्ड मार्केट भी मिल जाता है। इस तरह नेपियर घास केवल चारा ही नहीं, बल्कि एक assured income source भी बन सकती है।
कौन-कौन ले सकता है इस योजना का लाभ?
यह स्कीम सिर्फ व्यक्तिगत किसानों तक सीमित नहीं है, बल्कि समूहों और संस्थाओं के लिए भी खुली है। लाभार्थियों में आमतौर पर ये शामिल होते हैं:
- छोटे-बड़े किसान
- पंजीकृत गोशालाएं व गो-आश्रय स्थल
- किसान उत्पादक संगठन (FPO)
- स्वयं सहायता समूह (SHG)
- अन्य स्वैच्छिक संस्थाएं जो पशुपालन या गौसंरक्षण से जुड़ी हों
आवेदन कैसे करें?
जो किसान या संस्थाएं इस योजना का लाभ लेना चाहते हैं, उन्हें अपने जिले के
- नजदीकी पशुपालन विभाग कार्यालय, या
- मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी (CVO) के दफ्तर
से संपर्क करना होगा।
वहीं से आपको आवेदन फॉर्म, प्रक्रिया और शर्तों की जानकारी मिलेगी। आमतौर पर इन दस्तावेजों की जरूरत पड़ती है:
- आधार कार्ड
- बैंक पासबुक
- भूमि के कागजात या पट्टा
- मोबाइल नंबर
कुछ राज्यों/जिलों में कृषि या पशुपालन से जुड़े ऑनलाइन पोर्टल पर भी आवेदन लिए जा सकते हैं, लेकिन नेपियर घास के लिए अक्सर ज़्यादातर प्रोसेस अभी ऑफलाइन या लोकल लेवल पर ही चल रहा होता है। स्थानीय अधिकारी से एक बार कन्फर्म ज़रूर कर लें।
नेपियर घास क्यों है ‘गेम चेंजर’?
नेपियर घास को कई जगह “हरा सोना” भी कहा जाता है, और इसकी वजहें भी दमदार हैं:
- यह हाई-यील्ड और प्रोटीन से भरपूर चारा घास है, जो दूध देने वाले पशुओं के लिए बेहतरीन फीड बनती है।
- एक बार सही तरह से रोपाई करने पर 6 से 10 साल तक लगातार कटिंग दी जा सकती है, यानी हर साल बार-बार बीज या जड़ में निवेश नहीं करना पड़ता।
- नियमित रूप से नेपियर खिलाने से गाय-भैंसों का दूध उत्पादन बढ़ता है और उनकी बॉडी कंडीशन यानी सेहत बेहतर होती है।
- हरा चारा खुद के खेत से मिलने लगे तो मार्केट से चारा खरीदने की dependency और cost दोनों काफी कम हो जाती हैं।
पशुपालकों के लिए बड़ा मौका
कुल मिलाकर, नेपियर घास की खेती और उस पर मिलने वाला सरकारी अनुदान, दोनों मिलकर पशुपालकों के लिए डबल फायदा वाला सौदा बन जाते हैं। एक तरफ सालभर के लिए हरा, पौष्टिक चारा मिल रहा है, दूसरी तरफ सरकार से सीधे आर्थिक सहायता और कई जगह बाय-बैक जैसी attractive सुविधा भी।
अगर आप डेयरी चला रहे हैं, अपने पशुओं की संख्या बढ़ाने की सोच रहे हैं या चारे की लागत से परेशान हैं, तो अपने जिले के पशुपालन विभाग से नेपियर घास योजना के बारे में डिटेल ज़रूर पूछें। सही गाइडेंस और थोड़ी सी प्लानिंग के साथ यह घास आपकी खेती और पशुपालन दोनों के लिए long-term प्रॉफिट का जरिया बन सकती है।
















