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Ayushman Yojana: अब आयुष्मान कार्ड की पेमेंट से पहले होगा ये अनिवार्य काम, फर्जी बिलों का भुगतान हो जाएगा बंद, नया नियम जानें

आयुष्मान योजना में फ्रॉड रोकने के लिए नई प्रक्रिया आई है, जिसमें ICU इलाज के दावों की मरीज या परिवार से अनिवार्य पुष्टि होती है। आधार आधारित e-KYC, ऑन-बेड फोटो, AI से संदिग्ध क्लेम की जांच, और कड़ी जांच-परखी के साथ अस्पतालों पर सख्त कार्रवाई की जाती है। इसका लक्ष्य फर्जी बिल रोककर योजना को पारदर्शी और भरोसेमंद बनाना है।

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आयुष्मान योजना के तहत ICU में किए गए इलाज का बिल अब सीधे अस्पताल के भरोसे नहीं छोड़ा जाएगा, बल्कि पहले मरीज या उसके परिवार से कन्फर्म किया जाएगा। इसका मतलब यह है कि पेमेंट से पहले सरकारी एजेंसी की कॉल आएगी और वह पूछेगी कि क्या सच में ICU में भर्ती रहे, कितने दिन इलाज चला और कौन-कौन सी सर्विस मिली।

अगर किसी बिल में ज़रा भी गड़बड़ी या डाउटफुल एंट्री दिखती है, तो सिर्फ फोन कॉल पर भरोसा नहीं किया जाएगा। ज़रूरत पड़ी तो टीम सीधे मरीज के घर पहुंचकर फिजिकल वेरिफिकेशन भी कर सकती है, ताकि कोई भी अस्पताल कागज़ों में ICU दिखाकर फ्री में पैसा न कमा सके।

मरीज की पुष्टि अब ज़रूरी

पहले ज्यादातर क्लेम प्रोसेस डॉक्यूमेंट्स और हॉस्पिटल डेटा के आधार पर हो जाता था, जिससे फ्रॉड की गुंजाइश बची रहती थी। अब पेमेंट प्रोसेस में मरीज या उसके परिजन की रियल टाइम कन्फर्मेशन एक अनिवार्य स्टेप बना दिया गया है, जिससे फर्जी एंट्री पकड़ना आसान होता है।

यह सिस्टम खासकर उन केसों के लिए ज़्यादा फायदेमंद है जहां मरीज को बाद में पता चलता है कि उसके नाम पर भारी-भरकम इलाज दिखाकर बिल पास करा लिए गए थे। नई प्रक्रिया से उन्हें अपनी बात रखने और गलत बिल पर तुरंत आपत्ति दर्ज कराने का मौका मिलता है।

आधार e-KYC और बायोमेट्रिक

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण ने बेनिफिशियरी लेवल पर भी सिक्योरिटी टाइट कर दी है। आयुष्मान कार्ड बनवाते समय और अस्पताल में सर्विस लेते वक्त दोनों चरणों पर आधार आधारित e-KYC, बायोमेट्रिक या फेस-ऑथेंटिकेशन अनिवार्य किया गया है।

इससे दो फायदे होते हैं: एक, किसी दूसरे के नाम पर कार्ड बनवाकर इलाज कराने का खेल मुश्किल हो जाता है, और दो, असली लाभार्थी की पहचान हर बार कन्फर्म की जा सकती है। कई राज्यों ने राशन कार्ड और अन्य डेटाबेस से लिंक कर के फर्जी पात्रता वाले कार्ड भी कैंसल करने शुरू कर दिए हैं।

ऑन-बेड फोटो और डिजिटल ट्रेल

अब हर क्लेम के साथ “on-bed patient photo” यानी अस्पताल के बेड पर मौजूद मरीज की फोटो अपलोड करना ज़रूरी कर दिया गया है। यह फोटो बाकी डॉक्यूमेंट्स के साथ क्लेम फाइल का हिस्सा बनती है, जिससे पेपर पर दिखाया गया इलाज और ग्राउंड रियलिटी को क्रॉस-चेक किया जा सके।

डिजिटल फोटो, टाइम स्टैम्प और हॉस्पिटल लॉग मिलकर एक तरह का डिजिटल ट्रेल बनाते हैं, जिसे बाद में ऑडिट के दौरान भी इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे में सिर्फ कागज़ी रिकॉर्ड के दम पर फर्जी भर्ती या फर्जी प्रोसिजर दिखाना पहले जैसा आसान नहीं रहा।

AI, ML और फ्रॉड एनालिटिक्स

NHA ने फ्रॉड एनालिटिक्स सॉल्यूशन में AI और मशीन लर्निंग की मदद से संदिग्ध पैटर्न पकड़ने वाला सिस्टम बनाया है। यह सिस्टम देखता है कि कौन से अस्पताल असामान्य रूप से ज्यादा क्लेम कर रहे हैं, किन पैकेज पर ज्यादा बिलिंग हो रही है, या कहां एक ही तरह के प्रोसिजर बार-बार दिखाए जा रहे हैं।

ऐसे डेटा पैटर्न से यह जल्दी साफ हो जाता है कि कहां इलाज सही है और कहां सिर्फ स्कीम का दुरुपयोग हो रहा है। संदिग्ध अस्पताल या ट्रांजैक्शन को फ्लैग कर दिया जाता है ताकि उन पर आगे डेस्क या फील्ड ऑडिट कराया जा सके।

ऑडिट, इंस्पेक्शन और फील्ड विज़िट

राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर रेगुलर डेस्क मेडिकल ऑडिट, फील्ड ऑडिट और सरप्राइज इंस्पेक्शन अब एंटी-फ्रॉड स्ट्रैटेजी का हिस्सा हैं। डेस्क ऑडिट में फाइलें, केस शीट, टेस्ट रिपोर्ट और बिलिंग पैटर्न देखे जाते हैं, जबकि फील्ड टीम अस्पताल और कभी-कभी मरीज के घर तक जाकर रियल सिचुएशन चेक करती है।

यू़पी जैसे राज्यों में पुराने सालों के रिकॉर्ड भी दोबारा खंगालने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि पहले से पास हो चुके क्लेम में भी अगर गड़बड़ी हो तो रिकवरी और पनिशमेंट दोनों हो सकें। इससे अस्पतालों को साफ मैसेज जाता है कि “एक बार पास हो गया” का मतलब अब सेफ नहीं है।

फर्जीवाड़े पर सख़्त पेनल्टी

अगर किसी अस्पताल पर नकद वसूली, गलत बीमारी दिखाकर ज्यादा बिलिंग, गैर-ज़रूरी सर्जरी, फर्जी मरीज या दस्तावेजों में हेरफेर जैसा केस पकड़ा जाता है, तो सीधे कड़ा एक्शन लिया जाता है। कई जगहों पर पहली गलती पर ही बिल की रकम का लगभग 10 गुना तक जुर्माना लगाने और क्लेम रोकने जैसी सज़ा तय की गई है।

दोहराई गई गड़बड़ी की स्थिति में अस्पताल को पैनल से डी-एम्पैनल, यानी पूरी तरह योजना से बाहर किया जा सकता है, जिससे वह आगे आयुष्मान के तहत एक भी मरीज का इलाज नहीं कर पाएगा। हाल के महीनों में करोड़ों रुपये की रिकवरी और कई अस्पतालों पर भारी दंड लगाने के उदाहरण सामने आए हैं।

आम लाभार्थी के लिए क्या मायने?

इन सभी बदलावों का सीधा मकसद है कि फ्री ट्रीटमेंट का फायदा सिर्फ असली और पात्र लाभार्थियों तक पहुंचे, न कि सिस्टम को हैक करने वाले अस्पतालों या बिचौलियों तक। जितनी ज्यादा पारदर्शिता और टेक्नोलॉजी-आधारित वेरिफिकेशन होगा, उतनी ही योजना की लाइफ और भरोसेमंद इमेज मजबूत होगी।

लाभार्थी के नजरिए से ज़रूरी है कि:

  • अस्पताल कोई कैश पेमेंट मांगे या ज़बरदस्ती पैकेज बदलने की कोशिश करे तो तुरंत शिकायत की जाए।
  • फोन पर आने वाली वेरिफिकेशन कॉल का ईमानदारी से जवाब दिया जाए, ताकि सही क्लेम पास हो सके और गलत पर रोक लग सके।

इस तरह ICU क्लेम वेरिफिकेशन, आधार e-KYC, ऑन-बेड फोटो, AI-आधारित फ्रॉड एनालिटिक्स और सख्त पेनल्टी जैसे कदम मिलकर आयुष्मान योजना को ज़्यादा पारदर्शी, भरोसेमंद और गरीब मरीजों के लिए वाकई उपयोगी बनाने की दिशा में मजबूत कदम साबित हो रहे हैं।

Author
Divya

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