
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और अदालतों ने चेक बाउंस मामलों से निपटने के लिए दिशानिर्देशों को और कड़ा कर दिया है, जिसका उद्देश्य वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित करना और कानूनी कार्यवाही में तेज़ी लाना है, नए नियमों के तहत अब चेक बाउंस को हल्के में नहीं लिया जा सकेगा, और उल्लंघनकर्ताओं को गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है।
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मुख्य बदलाव और सख्त प्रावधान
- बैंकों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है कि वे चेक बाउंस होते ही संबंधित पक्षों को तुरंत, रियल-टाइम अलर्ट भेजें।
- बार-बार चेक बाउंस करने वाले खाताधारकों के चेक से जुड़े लेन-देन को फ्रीज किया जा सकता है, जिससे वित्तीय कार्यों में बड़ी बाधा आ सकती है।
क्रेडिट स्कोर पर असर
- बाउंस हुए चेक की जानकारी को सीधे क्रेडिट ब्यूरो के साथ साझा किया जाएगा, जिससे दोषी व्यक्ति का क्रेडिट स्कोर बुरी तरह प्रभावित होगा और भविष्य में ऋण (loan) मिलना मुश्किल हो जाएगा।
- नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (Negotiable Instruments Act) के तहत चेक बाउंस के लिए अधिकतम कारावास की अवधि को बढ़ाकर दो साल कर दिया गया है। इसके अलावा, चेक राशि का दोगुना तक जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
अंतरिम मुआवजा
- अदालतों को अब यह अधिकार है कि वे सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता को चेक राशि का 20% तक अंतरिम मुआवज़ा देने का आदेश दे सकें, जिससे पीड़ित पक्ष को तत्काल राहत मिल सके।
- मामलों के जल्द निपटारे के लिए, अदालतों का लक्ष्य 90 दिनों के भीतर चेक बाउंस मामलों को सुलझाना है। साथ ही, डिजिटल फाइलिंग और नोटिस डिलीवरी की सुविधा भी शुरू की गई है।
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ये सख़्त कदम चेक के इस्तेमाल में ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देने और व्यावसायिक लेन-देन में विश्वास बहाल करने के लिए उठाए गए हैं। सभी चेक धारकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने खातों में पर्याप्त बैलेंस सुनिश्चित करें ताकि इन सख़्त कानूनी कार्रवाइयों से बचा जा सके
















