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Property Law Alert: पिता की संपत्ति पर बेटी का हक कब नहीं मिलता? इन 3 स्थितियों में दावा हो सकता है खारिज, जरूर जानें

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 2005 के बाद बेटी को पिता की पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर अधिकार मिल गए हैं। शादी से अधिकारों पर कोई असर नहीं पड़ता। हालांकि, पिता की स्व-अर्जित संपत्ति के लिए वसीयत के जरिए बेटी का दावा खारिज हो सकता है। 12 साल की समय सीमा में दावा करना जरूरी है। यह बदलाव महिला सशक्तिकरण की दिशा में बड़ा कदम है।

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daughters have equal rights in fathers property

भारतीय समाज में बेटियों के अधिकारों को लेकर लंबे समय से बहस चलती रही है। पुराने नियमों में बेटियों को पिता की संपत्ति में बराबर की हिस्सेदारी नहीं मिलती थी। लेकिन, साल 2005 के बाद भारत में कानून बदल गया और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के बाद बेटा-बेटी दोनों को बराबर का हक मिल गया है। अब बेटी को जन्म से ही पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा देने का प्रावधान है।

किन हालातों में बेटी का दावा खारिज हो सकता है

अधिकार मिलने के बावजूद कुछ खास स्थितियों में बेटी का दावेदारी खारिज या सीमित हो सकती है:

  • पिता द्वारा वसीयत बनाना:
    अगर संपत्ति पिता की खुद अर्जित (Self-acquired) है मतलब उन्होंने खुद अपने पैसे से खरीदी है तो वे अपनी वसीयत के जरिए किसी को भी संपत्ति दे सकते हैं। इस स्थिति में बेटी के पास कानूनी दावा करने का अधिकार नहीं होता है, क्योंकि स्व-अर्जित संपत्ति पर पिता की इच्छा सर्वोपरि है।
  • पिता की मृत्यु 9 सितंबर, 2005 से पहले होना:
    अगर पिता की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार संशोधन लागू होने से पहले हुई हो, तो बेटी को पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता। पुराने कानून के मुताबिक उस समय केवल बेटों को ही सहदायिक (Coparcener) माना जाता था और बेटी के अधिकार सीमित रहते थे।
  • संपत्ति पैतृक नहीं है:
    यदि संपत्ति कानूनी रूप से ‘पैतृक संपत्ति’ की परिभाषा में नहीं आती जैसे कि स्व-अर्जित और बाद में संयुक्त परिवार में शामिल न की जाए—तो बेटी को उस पर जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता। पैतृक संपत्ति वह होती है जो चार पीढ़ियों तक अविभाजित रही हो।

विवाह का अधिकारों पर असर नहीं

कई लोग मानते हैं कि शादी के बाद बेटी का संपत्ति में हिस्सा नहीं रहता, जबकि यह पूरी तरह गलत है। चाहे बेटी विवाहित हो या अविवाहित, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के संशोधन के बाद बेटा-बेटी दोनों को बराबर का अधिकार है।

पैतृक संपत्ति के दावे की समय सीमा

भारतीय अधिनियम के मुताबिक, बेटी को पैतृक सम्पत्ति के अधिकार के लिए दावा करने के लिए 12 साल की सीमा दी गई है। यह समय वंचित होने की तारीख से गिना जाता है, यानी जिस दिन अधिकार छिनता है या विवाद शुरू होता है।

लैंगिक समानता की ओर बड़ा कदम

2005 संशोधन भारत में लैंगिक समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है। अब बेटी अपने भाइयों जितना ही कानूनी उत्तराधिकारी है और अपने पिता की संपत्ति पर पूरी हकदार है। यह बदलाव महिला सशक्तिकरण के दृष्टिकोण से भी बेहद जरूरी था।

कानूनी उलझनों में फंसने से बचें

पैतृक संपत्ति पर अधिकार पाने के लिए बेटी को पूरी जानकारी रखना और सही समय पर कानूनी दावा करना बहुत जरूरी है। अगर कोई संदेह या विवाद है, तो बेहतर है कि किसी Legal Expert से सलाह ली जाए ताकि कानून की जटिलताओं में फंसे बिना अपना अधिकार सुरक्षित किया जा सके।

Author
Divya

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