
कई परिवारों में संपत्ति को लेकर अक्सर बहस और वाद-विवाद देखने को मिलता है, खासतौर पर जब बात दादा-दादी या पुरखों की प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी को लेकर होती है। अधिकतर लोग सोचते हैं की पोते का दादा की संपत्ति में जन्म से ही अधिकार होता है, लेकिन ऐसा नहीं है वास्तविकता में यह अधिकार संपत्ति के प्रकार और संबंधित कानूनों पर निर्भर करता है। ऐसे में दादा की प्रॉपर्टी पर पोते का कितना अधिकार होता है और इसे लेकर क्या नियम और कानून है चलिए जानते हैं इसकी पूरी जानकारी।
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पैतृक संपत्ति में पोते का अधिकार
यदि संपत्ति पैतृक (Ancestral) है, यानी चार पीढ़ियों से अविभाजित रूप में परिवार में है, तो पोते के जन्म से ही उसपर अधिकार होता है। इस तरह की संपत्ति में दादाजी किसी भी फैसले से पहले सभी कानूनी सह-मालिकों की सहमति लेना जरुरी होता है। पोता अपने पिता के हिस्से के मध्य में इस संपत्ति की भागीदारी पाता है, यानी पोते का अधिकार उसके पिता के हिस्से के सामान माना जाता है, इस सतही में पोते के पास पैतृक संपत्ति पर सीधे नियंत्रण होता है और वह इसमें अपने हिस्से के लिए मांग कर सकता है।
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स्व-अर्जित संपत्ति में अधिकार
दूसरी ओर यदि दादाजी ने संपत्ति अपनी कमाई या मेहनत से अर्जित की है, तो पोते को जन्म से कोई स्वतः अधिकार नहीं मिलता। इस संपत्ति को दादाजी अपनी मर्जी से किसी को भी वसीयत कर सकते हैं, चाहे वह परिवार का सदस्य हो या कोई बाहरी व्यक्ति। यदि दादाजी बिना वसीयत के निधन हो जाते हैं, तो संपत्ति उनके क्लास I उत्तराधिकारियों के बीच बांटी जाती है, जिसमें पत्नी, बेटे और बेटियां शामिल हैं।
ऐसे मामलों में पोते को आम तौर पर सीधे हिस्सा नहीं मिलता यदि उसका पिता अभी जीवित है। हालांकि, अगर पोते के पिता दादाजी से पहले मर चुके हों, तो पोता अपने मृत पिता के हिस्से का दावा कर सकता है। इसे उत्तराधिकार कानून में “representation” कहा जाता है।
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क्या है मुख्य कानून और हाल के फैसले
बता दें, हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम, 1956 के आहत ये नियम तय किए गए हैं। 2005 के संशोधन ने बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बेटों के समान अधिकार दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है की जब माता-पोता और बेटे जीवित हैं, तो पोते-पोतियां आमतौर पर दादा-दादी की संपत्ति में सीधे हिस्सेदारी का दवा नहीं कर सकते।
















