हाल ही में एक हाई कोर्ट ने ऐसा फैसला दिया है जो महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को नई ताकत देता है। इसमें कहा गया कि अगर पिता ने कई साल पहले परिवार के साथ कोई समझौता किया हो, तब भी बेटी को पैतृक संपत्ति में अपना हिस्सा मिलेगा। मुख्य बात यह है कि बेटी उस समझौते में शामिल न हुई हो या उस वक्त नाबालिग रही हो। यह फैसला हिंदू परिवारों में संपत्ति बंटवारे के पुराने रिवाजों को चुनौती देता है और बेटियों को बराबरी का दर्जा सुनिश्चित करता है।

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मामले की पूरी जानकारी!
यह केस एक संयुक्त हिंदू परिवार से जुड़ा था, जहां संपत्ति का बंटवारा लंबे समय से विवाद का विषय बना हुआ था। बेटी ने दावा किया कि कानून में हुए बदलाव के बाद वह भी संपत्ति की सह-मालिक बनी। परिवार के अन्य सदस्यों ने पुराने लिखित समझौते का हवाला देकर उसके दावे को खारिज करने की कोशिश की। लेकिन कोर्ट ने साफ कहा कि नाबालिग उम्र में किए गए फैसलों से बेटी बंधी नहीं। संपत्ति का कोई बंटवारा या बिक्री बेटी की सहमति के बिना अमान्य रहेगा।
इस तरह के विवाद आमतौर पर तब उभरते हैं जब परिवार के मुखिया पुराने तरीके से संपत्ति संभालते हैं। बेटी ने कानूनी बदलाव का हवाला देकर अपना मुकदमा मजबूत किया और कोर्ट ने इसे स्वीकार किया।
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कोर्ट के प्रमुख बिंदु
कोर्ट ने कई अहम तर्क दिए। सबसे पहले, पुराना समझौता बेटी के अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकता अगर वह उसमें पार्टी न रही हो। दूसरा, संपत्ति के स्वामित्व और परिवार की संरचना को साबित करने के लिए पूरी सुनवाई जरूरी है। तीसरा, कानून बेटियों को बेटों के बराबर हिस्सा देता है, चाहे समझौता कितना भी पुराना हो।
ये बिंदु संपत्ति कानून को सरल बनाते हैं और परिवारों को नई दिशा देते हैं। अब पुराने दस्तावेजों के नाम पर बेटियों को हक से वंचित नहीं किया जा सकता।
इसका असर क्या होगा?
यह फैसला लाखों परिवारों के लिए मिसाल बनेगा। खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां बेटियों को संपत्ति से दूर रखा जाता है। इससे जेंडर समानता मजबूत होगी और संपत्ति विवाद कम होंगे। बेटियां अब आत्मविश्वास से अपना हक मांग सकेंगी। कानूनी बदलाव ने साबित कर दिया कि समय के साथ अधिकार भी बदलते हैं। परिवारों को अब समान बंटवारे की आदत डालनी होगी।
















