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Supreme Court Ruling: पैतृक संपत्ति बेचना अब होगा कठिन, सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले के बारे में जानें

सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों ने पैतृक संपत्ति की बिक्री के नियम और स्पष्ट कर दिए हैं। अब ऐसी संपत्ति बिना सभी सह-वारिसों की सहमति के नहीं बेची जा सकती। हालांकि एक वारिस अपने अविभाजित हिस्से को बेच सकता है। कोर्ट ने पंजीकृत बिक्री विलेख को ही स्वामित्व हस्तांतरण का वैध आधार माना है, जिससे पारिवारिक विवादों में पारदर्शिता बढ़ेगी।

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Supreme Court Ruling: पैतृक संपत्ति बेचना अब होगा कठिन, सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले के बारे में जानें

भारतीय समाज में “पैतृक संपत्ति” सिर्फ ज़मीन या मकान नहीं होती, यह पीढ़ियों की मेहनत और परिवार की पहचान का प्रतीक मानी जाती है। लेकिन जब बात ऐसी संपत्ति को बेचने की आती है, तो कानून इसे बेहद सख़्ती से देखता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण फैसलों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पैतृक संपत्ति की बिक्री अब पहले से भी ज़्यादा कठिन और नियोजित प्रक्रिया बन गई है।

सहमति अब ज़रूरी शर्त

सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति अपनी पैतृक संपत्ति तभी बेच सकता है जब परिवार के सभी सह-वारिसों की सहमति हो। यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि हर सह-उत्तराधिकारी को अपने जन्म के साथ ही उस संपत्ति में समान अधिकार मिल जाता है।
दूसरे शब्दों में, पिता या किसी अन्य सदस्य के पास यह अधिकार नहीं कि वे दूसरों की अनुमति के बिना पूरी संपत्ति बेच दें।

अविभाजित हिस्से की बिक्री का अधिकार

हालांकि, कोर्ट ने मई 2025 में एक अहम स्पष्टता दी कि अगर संपत्ति का भौतिक बँटवारा (partition) नहीं हुआ है, तो कोई वारिस अपने अविभाजित हिस्से को बेच सकता है।
लेकिन इसमें एक शर्त है — खरीदार को संपत्ति का केवल वही हिस्सा मिलेगा जो विक्रेता के हिस्से के अनुरूप तय होगा, न कि पूरी ज़मीन या मकान। संपत्ति जब कानूनी रूप से विभाजित होगी, तभी खरीदार अपने हिस्से पर दावा कर सकेगा।

परिवार के मुखिया (कर्ता) की सीमित शक्ति

भारतीय संयुक्त परिवार व्यवस्था में परंपरागत रूप से पिता या कर्ता का दर्जा उच्च होता है। मगर कानून इसके बावजूद उन्हें यह पूर्ण अधिकार नहीं देता कि वे अकेले पैतृक संपत्ति बेच सकें।
केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में, जैसे कि परिवार के सामूहिक कर्ज़ का भुगतान या किसी आवश्यक कानूनी जरूरत को पूरा करने के लिए संपत्ति बेचना जरूरी हो, तो यह कदम मान्य माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के फैसले में यह भी कहा था कि ऐसे मामलों में बाकी सदस्यों को बिक्री को चुनौती देने का अधिकार नहीं है।

वसीयत का सीमित अधिकार

अक्सर लोग मान लेते हैं कि वसीयत (Will) के ज़रिए वे अपनी पैतृक संपत्ति किसी एक को दे सकते हैं। लेकिन कानून कहता है कि कोई व्यक्ति पैतृक संपत्ति में सिर्फ अपने हिस्से की ही वसीयत कर सकता है, पूरी संपत्ति की नहीं। असल में, जब तक संपत्ति का औपचारिक विभाजन नहीं होता, तब तक वसीयत से किसी और के अधिकार को प्रभावित नहीं किया जा सकता।

पंजीकृत बिक्री विलेख ही मान्य

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि किसी संपत्ति की वैध बिक्री तभी मानी जाएगी जब उसके लिए एक पंजीकृत बिक्री विलेख (Registered Sale Deed) तैयार हो। जीपीए (Power of Attorney) या गैर-पंजीकृत दस्तावेज़ों के आधार पर स्वामित्व का दावा अब अदालत में टिक नहीं सकता।
इस फैसले से यह संदेश स्पष्ट है कि संपत्ति के कानूनी हस्तांतरण के लिए कागजी औपचारिकताओं को पूरा करना अब अनिवार्य है।

क्यों जरूरी है कानूनी समझ

परिवारों में अक्सर भावनाओं या आपसी सहमति के आधार पर पैतृक संपत्ति के लेनदेन कर दिए जाते हैं, लेकिन बाद में यही सौदे अदालतों तक पहुँच जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के नए रुख ने एक बार फिर यह याद दिलाया है कि संपत्ति से जुड़े निर्णय हमेशा वैधानिक ढांचे में रहकर ही लिए जाने चाहिए।

Author
Divya

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